
गुर्जर प्रतिहार वंश (Gurjar Pratihar Vansh)
गुर्जर प्रतिहार वंश(Gurjar Pratihar Vansh): राजस्थान के इतिहास का महत्वपूर्ण वंश कहा जाने वाले गुर्जर प्रतिहार वंश का समय छठी से बारहवीं शताब्दी के बीच माना जाता हैl गुर्जर जाती (गुर्जर प्रतिहार वंश) सर्वप्रथम उल्लेख एहोल अभिलेख जो कि बादामी के चलुल्या नरेश पुलकेशिन द्वितीय द्वारा लिखित है, में मिलता हैl
गुर्जर प्रतिहार वंश के समय बाहरी आक्रान्ताओं के द्वारा कई बार आक्रमण करने पर भी हार नहीं मानी तथा उन्हें आखिरकार खदेड़ ही दियाl राजा हर्ष की मृत्यु के बाद हुई अव्यवस्था और बिखरी राजनितिक व्यवस्था को पुनर्स्थापित कियाl
गुर्जर प्रतिहार वंश और उनकी उत्पत्ति
गुर्जर प्रतिहार वंश (Gurjar Pratihar Vansh) की स्थापना छठी शताब्दी में हुईl कुछ अभीलेख जैसे; करडाह, देवली, राधनपुर और नीलकुण्ड (ट्रिक: कर दे रानी) में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया हैl
अरब यात्री प्रतिहारों (Gurjar Pratihar Vansh) को जुर्ज कहते थे l अल-मसूदी ने ‘अल – मसूदी’ ने अल्गुर्जर तथा राजा को बोरा कहाl
राजशेखर जो महेन्द्रपाल व महिपाल प्रथम के समय का प्रकांड विद्वान था, ने इनको अपने ग्रन्थ विद्धशालभंजिका में क्या कहा देखें:
| महेन्द्रपाल को | रघुकुल तिलक | रघुकुल चूड़ामणि |
| महिपाल को | रघुवंश मुकुटमणि | रघुकुल मुक्तामणि |
गुर्जर प्रतिहारों (Gurjar Pratihar Vansh) के समय एक चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया साथ ही उसके द्वारा किये गया वर्णन में 72 देशों का वर्णन है l उसने उन 72 देशों में से एक देश को कू चे लो कहा और पीलोमोलो (भीनमाल) को उसकी राजधानी के रूप में बतायाl
प्रतिहारों की उत्पत्ति के स्संबंध में विभिन्न विद्वानों के विचार :
| विद्वान | विचार |
| केनेडी | ईरानी मूल |
| कनिंघम | शक व यू-चियों की संतान |
| स्मिथ, ब्युलेर, हार्नले | हूणों की संतान |
| गोपीनाथ शर्मा, दशरथ शर्मा | भारतीय मूल |
| डी. आर. भंडारकर | विदेशी गुर्जर |
मंडोर के प्रतिहार:
मंडोर की प्रतिहार शाखा की जानकारी हमें महत्वपूर्ण दो शिलालेखों से मिलती है:
- जोधपुर का शिलालेख 836 ई.
- घटियाला का शिलालेख
ये दोनों अभिलेख हरिश्चंद्र (रोहिलासिद्ध भी कहा गया है) को प्रतिहारों (Gurjar Pratihar Vansh) के गुरु के रूप में मानते हैं l यह भी उल्लेख मिलता है कि इनकी दो रानियाँ थी एक एक ब्रह्माणी तथा दूसरी क्षत्राणीl
| ब्रह्माणी से उत्पन्न संताने | क्षत्राणी से उत्पन्न संतानें |
| ब्राह्मण प्रतिहार कहलाये | क्षत्रिय प्रतिहार कहलाये |
हरिश्चंद्र के चार पुत्र हुए;
- भोगभट्ट
- कदल
- रज्जिल (मंडोर के प्रतिहारों की वंशावली शुरू इसी से होती हैl)
- दद्दl
इन चारों ने मिलकर मांडव्यपुर की जीत हासिल कीl
नागभट्ट प्रथम: नागभट्ट प्रथम इस वंश का सबसे पराक्रमी शासक माना जाता है l इसका समय 730 ई. से 760 ई. तक माना जाता है l नागभट्ट प्रथम ने अपनी राजधानी मंडोर से मेड़ता स्थापित कीl नागभट्ट प्रथम (नागावलोक) का दरबार ‘नागावलोक का दरबार’ कहलायाl
सिंध और बिलोचों का दमन करने तथा उनको अपनी सीमा से आगे एक भी कदम नहीं रखने देने के कारण नागभट्ट प्रथम को मलेछों का नाशक/नारायण कहा गयाl
प्रतिहार वंश की इस शाखा में कई महत्वपूर्ण शासक थे लेकिन नागभट्ट प्रथम सबसे महत्वपूर्ण है l इसी शाखा के कक्कुक घटियाला और मंडोर में जयस्तंभ की स्थापना की थी l
मंडोर की सत्ता परिवर्तन की कहानी: प्रतिहारों से राठौड़ों तक का सफर
12वीं शताब्दी के मध्य तक, मंडोर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में चौहानों का वर्चस्व धीरे-धीरे मजबूत होता गया, जिसका प्रमाण 1145 ईस्वी के सहजपाल चौहान के अभिलेख से मिलता है। हालांकि, इस दौर में भी मंडोर का किला प्रतिहारों (Gurjar Pratihar Vansh) की इंदर शाखा के नियंत्रण में बना रहा।
समय के साथ परिस्थितियाँ बदलीं। इंदर शाखा को हमीर परिहार के लगातार आक्रमणों का सामना करना पड़ा, जिससे वे असहज और असुरक्षित हो गए। अंततः 1395 ईस्वी में उन्होंने यह दुर्ग राव बिरम राठौड़ के पुत्र चूंडा को दहेज के रूप में सौंप दिया।
इस परिवर्तन के साथ ही मंडोर में प्रतिहारों का राजनैतिक प्रभाव लगभग समाप्त हो गया। धीरे-धीरे यह समूचा क्षेत्र राठौड़ वंश के शासन के अधीन आ गया, जिससे मारवाड़ में एक नए युग की शुरुआत हुई।
मंडोर के प्रतिहारों की वंशावली
- हरिश्चंद्र/रोहिलासिद्ध (550 ई.)
- रज्जिल
- नरभट्ट
- नागभट्ट प्रथम
- देवराज
- कक्कुक
- वत्सराज