
अजमेर के चौहान (Chauhans of Ajmer)
अजमेर के चौहान (Chauhans of Ajmer): इन्हें शाकम्भारी के चौहान भी कहा जाता है l अजमेर के चौहान वंश का सम्बन्ध जांगलदेश, सपाद्लक्ष तथा अहिछत्रपुर आदि स्थानों के साथ मिलता है l इनका निवास स्थान बीकानेर, जयपुर और उत्तरी मारवाड़ मिलता है l इन्होंने अपनी राजधानी अहिछत्रपुर (नागौर) को बनाया l
कई ग्रन्थ व अभिलेखों का अध्ययन करने के बाद हमें इनकी कई शाखाएं मिलती है:
- शाकम्भरी के चौहान (अजमेर के चौहान) या सपादलक्ष के चौहान
- लाट के चौहान
- प्रतापगढ़ के चौहान
- जाबालिपुर के चौहान
- रणथम्भौर के चौहान
- नाडौल के चौहान आदि l
इस लेख में अजमेर के चौहान वंश (शाकम्भरी/साम्भर) का वर्णन दिया गया है l
वासुदेव चौहान:
शाकम्भरी के चौहानों का आदिपुरुष वासुदेव चौहान को माना जाता है जिसने 551 ई. के आसपास शाकम्भरी में चौहान राजवंश की नींव डाली थी l इस बात का प्रमाण हमें बिजौलिया अभिलेख से मिलता है l Chauhans of Ajmer
- इसने अहिछत्रपुर (नागौर) को अपनी राजधानी बनाया l
- सांभर झील का निर्माण करवाया l
- इसे चौहानों का आदिपुरुष माना जाता है l
इसके बाद कई चौहान शासक हुए जिनके बारे में हमें विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है l फिर भी कुछ शासकों के नाम दिए गए हैं उन्हें आप देख सकते हैं l जैसे; जयराज, विग्रह्राज, चन्द्रराज, दुर्लभराज आदि l
ऐसा माना जाता है कि चौहान प्रारंभ में गुर्जर प्रतिहारों के सामंत थे l गुवक प्रथम के बारे में एक जानकारी मिलती है कि इसने चौहानों को प्रतिहारों से मुक्त करवाया l
वाक्पतिराज प्रथम:
इसके बारे में पृथ्वीराज विजय नामक ग्रन्थ (जयनक द्वारा रचित) में उल्लेख मिलता हैl यह चौहानों का प्रथम शासक था जिसने महाराज की उपाधि धारण की थी l इसका कन्नौज के प्रतिहारों के साथ संघर्ष होना बताया गया है तथा उसमे इसे विजयी बताया गया है l Chauhans of Ajmer
वाक्पतिराज के बाद विन्ध्यराज तथा विन्ध्यराज के बाद सिंहराज शासक बना l सिंहराज वाक्पतिराज प्रथम का पुत्र था जिसने ‘महाराजाधिराज‘ की उपाधि धारण की थी l
विग्रहराज द्वितीय:
विग्रहराज द्वितीय अपने पिता सिंहराज की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा l इसका शासन दसवीं शताब्दी के मध्य माना गया है l उसने ‘खुर राजोंधकर’ उपाधि धारण की l इसने भडोंच में अपनी कुलदेवी आशापुरा माता का मंदिर बनवाया l Chauhans of Ajmer
विग्रहराज द्वितीय के बाद कई शासकों के बारे में जानकारी मिलती हैl जिनमें प्रमुख है: दुर्लभराज द्वितीय, गोविन्दराज तृतीय, वाक्पतिराज द्वितीय, वीर्यराम, चामुंडराज, दुर्लाभ्राज तृतीय, वीरसिंह, विग्रहराज तृतीय, पृथ्वीराज प्रथम आदिl
अजयराज:
अजयराज पृथ्वीराज प्रथम का पुत्र था l इसके काल को ‘चौहानों के साम्राज्य का निर्माण काल’ (गोपीनाथ शर्मा के अनुसार) माना जाता है l
- इसने मालवा के परमार शासक नरवर्मन को हराया तथा उसके सेनापति सुलहण को बंदी बनाया l
- इसने 1113 ई. में अजमेर नगर बसाया तथा उसे अपनी राजधानी बनाया l
- गढ़बीठली दुर्ग (तारागढ़ दुर्ग) का निर्माण करवाया जो अजमेर में स्थित है l
- इसने अजयप्रिय द्रम्म नामक चांदी के सीके चलाये l
- अपना साम्राज्य अपने पुत्र अर्नोराज को सौंपा तथा पुष्कर चला गया l
आर्णोराज:
यह अजयराज का पुत्र था l यह 1133 ई. में अजमेर का राजा बना l ‘महाराजाधिराज परमेश्वर परमभट्टारक’ इसकी प्रमुख उपाधि थी l
- इसने आनासागर झील का निर्माण करवाया l
- पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया l
- देवबोध व धर्मघोष इसी राजा के समय के विद्वान थे l
- इसके पुत्र जग्गदेव ने इसकी ह्त्या कर दी तथा गद्दी पर बैठा l
विग्रहराज चतुर्थ:
विग्रहराज चतुर्थ को बीसलदेव चौहान भी कहा जाता है l इसने 1158 से 1163 ई. तक शासन किया l Chauhans of Ajmer
- इसने गजनी के शासक खुशरुशाह, दिल्ली के तोमर वंशीय शासक तंवर तथा भंडानकों को पराजित किया l
- इसे साहित्यकारों का आश्रयदाता कहा जाता है l Chauhans of Ajmer
- सोमदेव इसका दरबारी कवि था l सोमदेव ने ‘ललितविग्रहराज’ नाटक की रचना की l
- ‘कवि बांधव’ विग्रहराज चतुर्थ की उपाधि थी जो उसे ‘जयानक भट्ट’ द्वारा दी गयी थी l
- विग्रहराज चतुर्थ ने ‘हरिकेली’ नाटक की रचना कीl
- उसने अजमेर में एक ‘संस्कृत पाठशाला’ का निर्माण करवाया जिसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने ‘अढाई दिन के झोंपड़े’ में बदल दिया l कुतुबुद्दीन ऐबक गजनी के मुहम्मद गौरी का सेनापति था l
- उसने टोंक में बीसलपुर क़स्बा बसाया तथा इसी नाम से एक बाँध (बीसलपुर बाँध) बनवाया l
- इसने मलेछों को कई बार पराजित किया l Chauhans of Ajmer
- इसके काल को ‘चौहानों का स्वर्णयुग’ कहा जाता है l
विग्रह्राज चतुर्थ के बाद अपरगांगेय, पृथ्वीराज द्वितीय ने शासन किया l पृथ्वीराज द्वितीय के बाद सोमेश्वर चौहान राजा बना l