
गुर्जर प्रतिहार वंश (Gurjar Pratihar Vansh)
पिछले लेख में गुर्जर प्रतिहार वंश (Gurjar Pratihar Vansh) के पहले भाग जिसमे ‘मंडोर के गुर्जर प्रतिहारों’ के बारे में चर्चा की थीl इस लेख में जालौर, उज्जैन और कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों के बारे में चर्चा करेंगेl
जालौर, उज्जैन और कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों के संस्थ्थापक ‘नागभट्ट प्रथम‘ थाl इसका दरबार ‘नागावलोक का दरबार’ कहलाता थाl
नागभट्ट प्रथम ने अरब आक्रमणकारी जिन्हें मलेच्छ कहा गया है, का नाश कियाl इसने इन्हें अपने राज्य से दूर भगा दिया जो कभी इसके राज्य की तरफ मुंह भी नहीं कर पाए l इसने मलेच्छों तथा राष्ट्रकूटों को हरायाl
वत्सराज (783 – 795 ई.):
गुर्जर प्रतिहार वंश (Gurjar Pratihar Vansh) का महत्वपूर्ण शासक वत्सराज देवराज का बेटा थाl देवराज कक्कुस्थ का छोटा भाई था l और कक्कुस्थ नागभट्ट प्रथम का भतीजा था जो नागभट्ट प्रथम के बाद गद्दी पर बैठा l इस बात का उल्लेख हमें नहीं मिलता है कि नागभट्ट प्रथम संतानहीन था या उसकी संतानें राजा बनने के योग्य नहीं थी l इसलिए नागभट्ट प्रथम के बाद उसका भतीजा कक्कुस्थ गद्दी पर बैठा l
त्रिपक्षीय या त्रिकोणात्मक संघर्ष :
त्रिपक्षीय संघर्ष में शामिल (क) बंगाल का पाल वंश (ख) मान्यखेत के राष्ट्रकूट (ग) उज्जैन के प्रतिहार
त्रिपक्षीय संघर्ष को प्रतिहार नरेश वत्सराज ने ही शुरू किया था l वत्सराज ने पाल वंश के धर्मपाल को तथा मान्यखेत के राष्ट्रकूटों को हराया और तथा कन्नौज पर अधिकार कर लिया l इसी कारण वत्सराज प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक कहलाता है l इस बात का उल्लेख हमें दो ग्रंथो से मिलता है – (उद्योतन सूरी द्वारा लिखित कुवलयमाल तथा जिनसेन द्वारा लिखित हरिवंश पुराण ) l (Gurjar Pratihar Vansh)
वत्सराज ने कई निर्माण कार्य भी करवाए जिनमें औसियां (जोधपुर) में एक जैन मंदिर बनवाया जिसको पश्चिमी भारत का सबसे पुराना जैन मंदिर माना जाता है l
नागभट्ट द्वितीय (795 – 833 ई.):
गुर्जर प्रतिहार वंश में नागभट्ट द्वितीय वत्सराज का ज्येष्ठ पुत्र था l इसने कन्नौज को जीता तथा अपनी राजधानी बनाया l इसका दरबार भी ‘नागावलोक को दरबार’ कहलाता था l इसकी उपाधि ‘परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर’ थी l जिसका उल्लेख हमें बकुला अभिलेख से मिलता है l (Gurjar Pratihar Vansh)
इसकी प्रमुख विजयें:
- कान्यकुब्ज के राजा चक्रयुद्ध को हराया l
- पाल राजा धर्मपाल को हराया l
- आन्ध्र, सिंध और विदर्भ के शासकों को हराया l
राष्ट्रकूटों द्वारा आक्रमण में नागभट्ट द्वितीय को राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय के हाथों पराजित होना पड़ा l
ऐसा कहा जाता है कि नागभट्ट द्वितीय ने गंगा में जीवित समाधी ले ली थी l
मिहिरभोज प्रथम (836-885 ई.)
गुर्जर प्रतिहार वंश का एक महत्वपूर्ण शासक मिहिरभोज रामभद्र का पुत्र था l रामभद्र ने मिहिरभोज से पहले केवल तीन वर्ष (833 – 836 ई.) ही शासन किया l मिहिरभोज ने अपनी राजधानी कन्नौज को बनाया तथा उसे जीवनभर स्थायी राजधानी रखा l इसके समय में सुलेमान नामक अरब यात्री आया था जिसने इनकी भूरी – भूरी प्रशंसा की तथा इसको भारत का सबसे शक्तिशाली शासक कहा क्योंकि उसने अरबों द्वारा किये गए आक्रमणों को विफल कर दिया था l और उनको अपने राज्य में प्रवेश करने से हमेशा के लिए रोक दिया था l इसे बहुत शक्तिशाली राजा माना गया है l (Gurjar Pratihar Vansh)
मिहिरभोज की प्रमुख उप्पधियाँ :
| उपाधियाँ | अभिलेख या स्त्रोत |
| आदिवराह | ग्वालियर अभिलेख |
| प्रभास | दौलतपुर अभिलेख |
| आदिवराह | मुद्राओं पर |
| श्रीमदादिवराह | चांदी व ताम्बे के सिक्कों पर |
मिहिरभोज की प्रमुख उपलब्धियां :
- मिहिरभोज ने गुर्जरात्र प्रदेश पर पुनः अधिकार किया l
- इसने कलचुरी वंश को भी हराकर अपने अधीन किया l उनके राजाओं को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर किया l (Gurjar Pratihar Vansh)
- इसने हरियाणा तथा उज्जैन पर भी अधिकार किया l उज्जी पर अधिकार इसने राष्ट्रकूटों को हराकर किया l
- इसने पाल नरेश देवपाल तथा उसके उतराधिकारी नारायणमल को बुरी तरह हराया तथा उनके क्षेत्र पर अधिकार कर लिया l
- उसने चारों दिशाओं में अपने राज्य का विस्तार किया l
- अतः अंत में मिहिरभोज ने अपना राज्य त्याग दिया तथा महेन्द्रपाल को वहां का शासक बना दिया और खुद तीर्थ यात्रा पर निकल गया l
इस लेख के बाकी बचे हुए भाग का उल्लेख अगले भाग में किया जाएगा l