
गुर्जर प्रतिहार वंश (Gurjar Pratihar Vansh Dynasty)
गुर्जर प्रतिहार वंश: (Gurjar Pratihar Vansh Dynasty) यहाँ इस लेख में गुर्जर प्रतिहार वंश के शासकों का क्रमबद्ध अध्ययन किया जा रहा है l इसके भाग 1 व भाग 2 का भी पिछले लेखों में अध्ययन किया गया है l
गुर्जर प्रतिहार इतिहास में अति महत्वपूर्ण शासक सिद्ध हुए l इन्होंने बाहरी आक्रमणकारी अरबों का दमन किया तथा अपनी सीमा के अंदर आने से रोकाl
महेन्द्रपाल प्रथम (885 – 910 ई.):
गुर्जर प्रतिहार वंश की वंशावली मिहिरभोज प्रथम के बाद उसका पुत्र महेन्द्रपाल गद्दी पर बैठा तथा अपने राज्य का शासन संभाला l (Gurjar Pratihar Vansh Dynasty)
इसके राजकवि राजशेखर ने इसे कई उपाधियों से विरुद किया है: जिनमें; रघुकुल चूड़ामणि, निर्भयराज, निर्भयनरेंद्र आदि प्रसिद्ध हैl राजशेखर महेन्द्रपाल प्रथम का भी राजकवि था l
महेन्द्रपाल प्रथम की प्रमुख उपाधियाँ:
महेन्द्रपाल प्रथम की महत्वपूर्ण उपाधियाँ जो इसने खुद धारण की थी, निम्न प्रकार से हैं: परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर और परमभागवत आदिl
महेन्द्रपाल प्रथम की प्रमुख उपलब्धियां:
महेन्द्रपाल प्रथम ने कई क्षेत्रों को जीतकर अपने राज्य का हिस्सा बनाया l प्रतिहार – पाल वंश के संघर्ष में महेन्द्रपाल प्रथम की वियज हुई l इस विजय में इसने मगध और बिहार के हिस्सों पर अधिकार कर लियाl
काठियावाड़ तथा उना से महान्द्रपाल प्रथम के दो अभिलेख प्राप्त हुए हैं l इनमें बलवर्मा और उसके पुत्र अवनिवर्मा को महेन्द्रपाल प्रथम के सामंत बताया गया हैl
उसने बंगाल, बिहार, पंजाब तथा हरियाणा के क्षेत्र को जीतकर अपने राज्य में मिलाया l इस बात से यह सिद्ध होता है कि महेन्द्रपाल एक महत्वाकांक्षी राजा थाl
राजशेखर महेन्द्रपाल प्रथम का राजकवि (संस्थाकृत भाषा)l राजशेखर के एक ग्रन्थ ‘कर्पूरमंजरी’ के अनुसार वह महेन्द्रपाल का गुरु भी थाl
राजशेखर द्वारा लिखित प्रमुख ग्रन्थ:
- काव्यमीमांसा
- कर्पूरमंजरी
- विद्धसालमंजिका
- बालभारत
- बालरामायण
- हरविलास
- भुवनकोष
महेन्द्रपाल प्रथम के दो पुत्र थे; भोज द्वितीय तथा महिपाल प्रथम l बड़े पुत्र भोज द्वितीय ने 910 से 913 ई. तक केवल तीन साल तक शासन किया l इसके बारे में और संतुष्टिपूर्ण जानकारी हमें नहीं मिलती है l भोज द्वितीय के बाद उसका छोटा भाई महिपाल प्रथम शासक बना जिसका शासनकाल 914 ई. से 943 ई. तक माना जाता है l
महीपाल प्रथम (914 – 943ई.):
महिपाल प्रथम अपने समय का प्रतापी शासक था l इसने राष्ट्रकूटों से युद्ध किया तथा इंद्र तृतीय के हाथों से पराजित होना पड़ा l
इसके समय में एक अरबी शासक ‘अलमसूदी’ ने भारत की यात्रा की l तथा महिपाल प्रथम की और उसके राज्य की खूब प्रसंशा की l (Gurjar Pratihar Vansh Dynasty)
राजशेखर महिपाल प्रथम का भी राजकवि था l उसने महिपाल प्रथम को निम्न उपाधियाँ दी:
- रघुकुल मुकुटमणि
- आर्यवर्त का महाराजाधिराज
प्रचंडपांडव नामक ग्रन्थ राजशेखर द्वारा लिखा गया था जिसमें उसने महिपाल की प्रमुख विजयों का वर्णन किया है l उसके अनुसार महिपाल प्रथम ने मुरलों, मेकलों, कलिंगों, केरलों आदि को हराया l
महेन्द्रपाल द्वितीय (945 – 948 ई.):
प्रतापगढ़ के अभिलेख (946 ई.) के अनुसार घोटवार्षिका के चौहान इन्द्रराज को महेन्द्रपाल का सामंत बताया गया है l महेन्द्रपाल प्रथम के बाद क्रमशः देवपाल, विनायकपाल द्वितीय, महिपाल द्वितीय तथा विजयपाल के शासन के बारे में जानकारी मिलती है l इनमें से देवपाल की उपाधियाँ परमभट्टारक, महाराजाधिराज व परमेश्वर मिलती है l (Gurjar Pratihar Vansh Dynasty)
विजयपाल :
इनके बाद विजयपाल का शासन मिलता है l राजौर के अभिलेख के अनुसार विजयपाल क्षितिपाल का पुत्र थाl इसके शासन तक गुर्जर प्रतिहार वंश कई शाखाओं में विभाजित हो गया था l इसकी उपाधि भी ‘परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर’ मिलती है l (Gurjar Pratihar Vansh Dynasty)
राज्यपाल (910 – 1019 ई.):
राज्यपाल विजयपाल का पुत्र था l अपने पिता की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा l इसके समय में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया l उसने कई मंदिरों को ध्वस्त किया तथा वहां लूटपाट भी की l (Gurjar Pratihar Vansh Dynasty)
महमूद गजनवी के आक्रमण के समय राज्यपाल तथा खजुराहो के चंदेल्वंशीय नरेश विद्द्याधर के बीच आपसी झगड़ा हो गया तथा विद्याधर ने राज्यपाल की हत्या कर दी l
त्रिलोचनपाल ( 1019 – 1027 ई.):
त्रिलोचनपाल ने अपने पिता राज्यपाल की मृत्यु के बाद राजसिंहासन सम्भाला l महमूद गजनवी ने त्रिलोचनपाल पर भी आक्रमण किया तथा इसको हराया l इसके समय में गजनवी ने इसके राज्य को खूब लूटा l (Gurjar Pratihar Vansh Dynasty)
यशपाल
यशपाल प्रतिहार वंश का अंतिम शासक माना जाता है l यशपाल के बाद प्रतिहारों के किसी शासक के बारे में जानकारी नहीं मिलती है l अतः यशपाल ही प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था l
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